व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> जीवन एक खोज जीवन एक खोजतिलोकचन्द छाबड़ा
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इस पुस्तक का उद्देश्य इंसान की आत्म-शक्ति को जगाना और ख़ुद के भीतर छिपी असीम सम्भावनाओं की खोज करना है।...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
तिलोकचन्द छाबड़ा एक बहुमुखी प्रतिभावान व्यक्ति हैं व
जीवन मूल्यों के बहुत बड़े पक्षधर हैं। उन्होंने मूल्यों को जीवन में
उतारने के लिए जन-जन के बीच रहकर ख़ुद व्यावहारिक रूप से कार्य किया है।
वे एक सफल व्यवसायी के साथ एक कुशल लेखक व ट्रेनर भी हैं। उन्होंने अपना
जीवन इस उद्देश्य के लिए समर्पित कर दिया है कि लोगों को ऐसी राह पर लाया
जाए कि वे ज़िंदगी में हर तरह से सफल भी हों और उनके जीवन में सुख, शांति,
संतुष्टि, मूल्य और सच्चे आनंद का वास हो। वे चाहते हैं कि लोग आर्थिक रूप
से भी संपन्न हों और आध्यात्मिक शक्ति से भी पूर्ण हों। उन्होंने बहुत
बड़े अभियान के रूप में अपने कार्य को अंजाम दिया है और 70 लाख लोगों को
इस अभियान से जोड़ा है।
जीवन एक खोज में उन्होंने जीवन के कई महत्वपूर्ण विषयों जैसे अध्यात्म, गुरु, परमात्मा, धारणाएँ, आत्म-बल, जागरण आदि विषयों पर बड़ी सटीक चर्चा की है। उन्होंने बँधी-बँधायी धारणाओं से बाहर निकलकर इंसान की सोच को खुले आकाश में लाने का प्रयास किया है। इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य इंसान की आत्म-शक्ति को जगाना और ख़ुद के भीतर छिपी हुई असीम संभावनाओं की खोज करना है।
आशा है यह पुस्तक जिंदगी को नई दिशा देने में मददगार साबित होगी।
जीवन एक खोज में उन्होंने जीवन के कई महत्वपूर्ण विषयों जैसे अध्यात्म, गुरु, परमात्मा, धारणाएँ, आत्म-बल, जागरण आदि विषयों पर बड़ी सटीक चर्चा की है। उन्होंने बँधी-बँधायी धारणाओं से बाहर निकलकर इंसान की सोच को खुले आकाश में लाने का प्रयास किया है। इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य इंसान की आत्म-शक्ति को जगाना और ख़ुद के भीतर छिपी हुई असीम संभावनाओं की खोज करना है।
आशा है यह पुस्तक जिंदगी को नई दिशा देने में मददगार साबित होगी।
पुस्तक के बारे में
इन्सान एक मूल बात को समझ ले तो वह ज़िन्दगी
को बहुत
बेहतरीन तरीक़े से जी सकता है, वह है ज़िन्दगी के विकास में स्वयं का
महत्व। मनुष्य सृजनकर्ता है, मात्र पालनकर्ता नहीं है। इसी बात को बहुत
बेहतरीन तरीक़े से ‘‘जीवन एक
खोज’’ पुस्तक में
प्रस्तुत किया है।
जीवन जितना सुन्दर व सरल है उसके बारे में इस पुस्तक में जानकर बड़ा आश्चर्य होता है। हमने कितने बोझ अनावश्यक रूप से जीवन पर डाल रखे हैं, कितनी भ्रान्तियों को लेकर जी रहे हैं और ज्यों-ज्यों जीवन में आगे बढ़ते जा रहे हैं त्यों-त्यों और भ्रान्तियाँ इकट्ठी करते जा रहे हैं। मूल बात कहीं छूटती जा रही है और व्यर्थ के प्रयास बढ़ते जा रहे हैं।
इन सब बातों को बहुत सुस्पष्ट अन्दाज़ में बहुत तर्क़युक्त भाषा में इस पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है। जिस प्रकार डोर बहुत उलझ जाती है और बहुत प्रयास से भी सुलझ नहीं पाती है, फिर उसी डोर को कोई आकर सुलझा देता है, ठीक उसी प्रकार जैसे-जैसे इस पुस्तक को पढ़ते हैं तो ऐसा महसूस होता है जैसे ज़िन्दगी की उलझी हुई डोर सुलझती जा रही है। बड़ा हल्कापन महसूस होता है। जिस आनन्द की खोज में मनुष्य लगा हुआ है, इस पुस्तक को पढ़ने के बाद लगता है जैसे उसके किनारे आ खड़ा हुआ है।
हर इन्सान के भीतर एक बहुत विशाल जगत है। बहुत सारी उर्जाएँ हैं जिनमें लगातार प्रवाहित होने की प्रवृत्ति है। जैसे ही हम व्यर्थ की चेष्टाओं से अपने आप को मुक्त करते हैं और भयवश किए गए कृत्यों से छुटकारा पाते हैं, हमारी ऊर्जा स्वतः असली विकास का रास्ता खोज लेती है। उसके प्रवाह में विशालता आ जाती है। जीवन बड़ा उद्देश्यवान बन जाता है। असली आनन्द की अनुभूति होने लगती है।
इस पुस्तक के बारे में जितना भी लिखो, बड़ा तुच्छ लगता है। यह मानव जाति की आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है।
जीवन जितना सुन्दर व सरल है उसके बारे में इस पुस्तक में जानकर बड़ा आश्चर्य होता है। हमने कितने बोझ अनावश्यक रूप से जीवन पर डाल रखे हैं, कितनी भ्रान्तियों को लेकर जी रहे हैं और ज्यों-ज्यों जीवन में आगे बढ़ते जा रहे हैं त्यों-त्यों और भ्रान्तियाँ इकट्ठी करते जा रहे हैं। मूल बात कहीं छूटती जा रही है और व्यर्थ के प्रयास बढ़ते जा रहे हैं।
इन सब बातों को बहुत सुस्पष्ट अन्दाज़ में बहुत तर्क़युक्त भाषा में इस पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है। जिस प्रकार डोर बहुत उलझ जाती है और बहुत प्रयास से भी सुलझ नहीं पाती है, फिर उसी डोर को कोई आकर सुलझा देता है, ठीक उसी प्रकार जैसे-जैसे इस पुस्तक को पढ़ते हैं तो ऐसा महसूस होता है जैसे ज़िन्दगी की उलझी हुई डोर सुलझती जा रही है। बड़ा हल्कापन महसूस होता है। जिस आनन्द की खोज में मनुष्य लगा हुआ है, इस पुस्तक को पढ़ने के बाद लगता है जैसे उसके किनारे आ खड़ा हुआ है।
हर इन्सान के भीतर एक बहुत विशाल जगत है। बहुत सारी उर्जाएँ हैं जिनमें लगातार प्रवाहित होने की प्रवृत्ति है। जैसे ही हम व्यर्थ की चेष्टाओं से अपने आप को मुक्त करते हैं और भयवश किए गए कृत्यों से छुटकारा पाते हैं, हमारी ऊर्जा स्वतः असली विकास का रास्ता खोज लेती है। उसके प्रवाह में विशालता आ जाती है। जीवन बड़ा उद्देश्यवान बन जाता है। असली आनन्द की अनुभूति होने लगती है।
इस पुस्तक के बारे में जितना भी लिखो, बड़ा तुच्छ लगता है। यह मानव जाति की आज की सबसे बड़ी ज़रूरत है।
पूर्ववचन
मनुष्य अपने जीवन पर ग़ौर करे, तो देखने में आता है कि जीवन चल रहा है, पर
उसमें वह आनन्द नहीं है। कभी-कभी वह अभिशाप जैसा लगता है। जीवन पर सत्य का
असर बहुत कम दिखता है, पाखण्ड का ज़्यादा। यह निश्चित है कि कहीं न कहीं
कुछ गलत है। क्योंकि सब कुछ सही हो, तो जीवन में इतनी नारकीयता नहीं हो
सकती। हमें यह बात स्वीकार करने में देरी नहीं करनी चाहिए कि हम सामूहिक
रूप से कुछ गलत कर रहे हैं। इसे स्वीकार करने में हम जितनी देर करेंगे,
उतनी ही देर बदलाव के लिए स्वयं को तैयार करने में लगेगी।... और यदि हम,
जो चल रहा है, उसे ही सही मानकर आगे बढ़ते रहेंगे, तो निश्चित है कि
स्थिति बद से बदतर होती जाएगी।
जीवन से जुड़े बहुत सारे विषय हैं, जिनके बारे में हम उनका सिर्फ़ एक पहलू ही सामने रखकर सोचते हैं, उनके अन्य पहलुओं के बारे में कभी सोचते ही नहीं हैं। चारों ओर हमने ताले जकड़ लिए हैं और वे ताले इतने पुराने हो चुके हैं और जंग खा चुके हैं कि किसी चाबी से खुलने वाले नहीं हैं। अब तो उन्हें चोट से तोड़ना ही पड़ेगा। अगर हमें इन तालों में ही बन्द रहना सुरक्षित लगता है और हमें इनमें रहने की आदत हो गई है, तो बात अलग है वरना हम इनसे बाहर आकर देखें, बाहर कितनी आज़ादी है, कितना आनन्द है, कितना हल्कापन है।
जीवन से जुड़े बहुत सारे विषय हैं, जिनके बारे में हम उनका सिर्फ़ एक पहलू ही सामने रखकर सोचते हैं, उनके अन्य पहलुओं के बारे में कभी सोचते ही नहीं हैं। चारों ओर हमने ताले जकड़ लिए हैं और वे ताले इतने पुराने हो चुके हैं और जंग खा चुके हैं कि किसी चाबी से खुलने वाले नहीं हैं। अब तो उन्हें चोट से तोड़ना ही पड़ेगा। अगर हमें इन तालों में ही बन्द रहना सुरक्षित लगता है और हमें इनमें रहने की आदत हो गई है, तो बात अलग है वरना हम इनसे बाहर आकर देखें, बाहर कितनी आज़ादी है, कितना आनन्द है, कितना हल्कापन है।
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